Monday, June 8, 2009
मैं अपनी पहचान से तंग हूँ
इसी एक पंक्ति के सच में घुल-घुल कर मेरा जीवन सांद्र होता जा रहा है। मेरी सामाजिक छवि मुझे अपने आत्मगत पक्ष को कहने से रोकती है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि एक ऐसा मंच हो जहाँ मेरी पहचान सिर्फ और सिर्फ मेर लिखे से हो। मेरे निजी गुणों या अवगुणों से न हो। मेरे सामाजिक हैसियत या चरित्र से न हो।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment