Thursday, June 25, 2009

“हाँ इस बंदे न अच्छा काम किया है“

दो तरीके के लोग लोकप्रिय होते हैं। एक फौरी कारणों से दूसरे स्थाई कारणों से। मुझे तय करना है कि मैं क्या चाहता हूं। जीवन चुनाव है। जीवन बोझ नहीं हैं। जीवन हमारे उपर थोपा नहीं जाता। जीवन में हम पूर्णतया स्वतंत्र नहीं होते लेकिन उपलब्ध विकल्पों में से मनपसंद विकल्प का चुनाव करने की स्वंतत्रता हमारेे पास ही होती हैं। इस अपूर्ण स्वतंत्रता और विकल्पों के चुनाव की पूर्ण स्वतंत्रता के तनाव से जीवन का ताना-बाना निर्मित होता है। इसे ताने-बाने में हम रंग भरके अपने व्यक्तिगत जीवन का कालीन तैयार करते हैं। छोटे-छोटे कामों से अस्थाई लोकप्रियता जरूर मिल जाती है लेकिन स्थाई लोकप्रियता पाने के लिए ठोस काम करना होता है। लोकप्रियता के छोटे-छोटे लालचों का परित्याग करके ही कुछ ठोस हासिल करना संभव हो पाएगा। जिंदगी भर अखबारी लेख लिख कर पर्याप्त पैस और लोकप्रियता पाई जा सकती है। ऐसी ही दूसरे कई तरीके हैं जिनसे लोकप्रियता पाई जा सकती है। लेकिन इनमें से कुछ भी स्थाई और दीर्घजीवी नहीं है। इसमें से ऐसा कुछ नहीं है जो आगे वाली पीढ़ी के लिए अनिवार्य हो। जब तक हम ऐसा कोई काम नहीं करते कि जो आने वाली पीढ़ियों के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक हो तब तक हमें किसी प्रकार के महत्वपूर्ण कर्म का भ्रम नहीं होना चाहिए। हम जिस क्षेत्र में काम कर रहे हैं आने वाली पीढ़ीयों का कोई व्यक्ति उस क्षेत्र में काम करे तो एक बार हमें जरूर सराहे कि, “हाँ इस बंदे न अच्छा काम किया है“ उसका मन हमारे लिए सम्मान से भर जाए। एक जीवन का इससे बड़ी उपलब्धि दूसरी न होगी। ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य किसी भी क्षेत्र में ऐसा काम कर सकना एक बड़ी उपलब्धि होगी।

2 comments:

  1. सुन्‍दर। शुभकामनाएँ।

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