Tuesday, June 9, 2009

हर वाक्य मेरे व्यक्तित्व में लिपटा होगा

आप को यह डायरी पढ़ कर वस्तुतः क्या मिलेगा मैं उसके अंतः में नहीं जाना चाहता। किसी व्यक्ति को जानना कहीं न कहीं हमें अपने बारे में जानने से जुड़ा होता है। ऐसा ही कोई दूसरा, तीसरा कारण हो सकता है। लेकिन मैं इस विषय को यहीं छोड़ता हूँ। बात इसकी होनी चाहिए कि मैं यह डायरी क्यों लिखता हूँमैं तो अपने भय से मुक्त होना चाहता हूँ। मैं उन बातों से मुक्त होना चाहता हूँ जो मेरे अंदर घुमड़ती रहती हैं। जिनको किसी से कह भी नहीं सकता और जिन्हं भीतर छिपाए रख कर जीना भी मुश्किल लगता है।क्योंकि यह डायरी है इसलिए पूरी तरह मनोगत होगा। एक व्यक्ति के जीवन अनुभवों से लदा-फदा होगा। इस डायरी का हर वाक्य मेरे व्यक्तित्व में लिपटा होगा। इस तरह की आत्म-ग्रस्तता कभी कभी ऊब पैदा कर देती है। फिर भी मैं कोशिश करूुँगा कि लेखकीय दुर्गुणों से यथासंभव बचुँ।क्योंकि मैं अपने पाठक की सहूलियत को ही अपना प्रथम ध्येय मानता हूँ। मेरे लिए लेखन एक एकांतिक कला नहीं है। मेरे लिए लेखन एक कलात्मक संवाद है। अपने पाठकों के साथ। मैं जब भी कुछ लिखता हूँ तो इसका एक ही अर्थ है, मैं उस बात को किसी से साझा करना चाहता हूँ। मैं अपने तईं लिख कर खुश नहीं रह सकता। इसलिए मैं ऐसा गद्य लिखने की कोशिश करता हूँ जो पाठक को रूचिकर और सहज लगे। ऐेसा गद्य जिसमें पाठक मेरे कहे पर ध्यान दे सके। ऐसा न हो कि पाठक मेरे लिखे शब्दों में उलझ कर रह जाए

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