Wednesday, June 10, 2009
कठिन कार्य करना ही विशिष्ट कार्य करना है
मनोगत लेखन या संवाद किसी रचनात्मक व्यक्तित्व के लिए औषधी की तरह है। मेरे लिए भी यही सच है। डायरी की सबसे अच्छी बात यह है कि यहाँ आपको तार्किक नहीं होना पड़ता। यहाँ यह डर नहीं खाता कि मैं अपने को दोहरा रहा हूँ, प्रलाप कर रहा हूँ। जिस तरह से आत्म-संशयी व्यक्ति अपनी आवाज पर अतिरिक्त जोर देकर बोलता है उसी तरह आत्म-सशंकित लेखक अपने लिखे में अत्यधिक पेंचो-खम लाने की कोशिश करता है। इस दुर्गुण से दूर रह कर डायरी लिखना कठिन कार्य है। कठिन कार्य करना ही विशिष्ट कार्य करना है।
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प्रिय राहुल जी,
ReplyDeleteकिसी की किसी बात से इत्तेफाक नहीं रखना और उसके प्रति आग्रहों से भरा रहना, दोनों दो बातें हैं। अपने या किसी भी पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए हमेशा लिए महत्त्वपूर्ण रही हैं। बहस का मतलब भी यही है जिसका आपने हमेशा खयाल रखा है। मोहल्ले में जो हो रहा है, उससे दुखी हूं, लेकिन इसे खड़ा इसलिए देखना चाहता हूं कि ब्लॉग या हिंदी इंटरनेट की दुनिया में इसने जो योगदान किया है, उसे यों ही खारिज नहीं किया जा सकता। हो सकता है कि थोड़े दिनों में फिर सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ ठीक हो जाए। सच कहिए तो जिन दोनों लेखों पर मैंने जो प्रतिक्रिया लिखी थी, वह अपने अंदर के दबाव का ही नतीजा थी। आपने शायद पहले भी गौर किया होगा कि दलित और महिला सवालों पर मैं हमेशा ही मुखर रहा हूं। यहां भी मोहल्ले की धारा के प्रतिकूल बिल्कुल बेहूदा बातों को देख कर परेशान हो गया था। बहरहाल, उम्मीद बनाए रखना हम सबके लिए जरूरी ही नहीं, जिम्मेदारी भी है, क्योंकि वाचाल तभी तक बोलता रहता है, जब तक कि उसके सामने उससे ज्यादा ताकत के साथ बोलने वाला न खड़ा हो जाए...
बहुत-बहुत शुक्रिया
अरविंद शेष.