Tuesday, June 9, 2009
मन कुछ उलझा सा है, कि शुरू कहाँ से करूँ
एक समय ऐसा था कि मैं दिन-दिन भर डायरी लिखता था। इसका नतीजा यह हुआ कि मैं वह बनने के राह पर चल पड़ा जिसकी कल्पना मेरे घर-परिवार में किसी ने न की होगी। मैं इण्टर मीडिएट का छात्र रहा होऊँगा जब पहली बार सादे पन्नों पर अपने मन की बातें लिखना शुरू किया था। उस दौर में मैं अकेला था। दूखी था। किसी को अपने बेहद करीब पाना चाहता था। मन कातरता से भरा रहता था। जो किसी से नहीं कह सकता था वो सादे पन्ने पर लिखता था। फिर उस लिखे को कई बार पढ़ कर फाड़ देता था। और यह थी मेरी डायरी लेखन या लेखन की शुरुआत। तब यह नहीं जानता था कि मैं जो कर रहा हूँ उसे डायरी लेखन कहते हैं। और मैंने जो राह चुनी है वो मुझे दस-बारह साल बाद एक लेखक बनने की मंजिल तक ले आएगी।
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जिन्दगी भर उदास रहना था
ReplyDeleteफिर तो मेरे ही पास रहना था
ब्लॉग जगत पर पहला कदम रखने पर आपका स्वागत
उम्र भर साथ था निभाना जिन्हें
फासिला उनके दरमियान भी था
-‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
इस गज़ल को पूरा पढें यहां
श्याम सखा ‘श्याम’
http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
ReplyDeletegood luck.narayan narayan
ReplyDeleteहिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
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